गोपारचन

Archive for अक्टूबर 4th, 2010


अनुज –

अयोध्या के फैसले पर कई टिप्पणियां सुनने को मिलीं, भैये स्वघोषित संवेदनशील- दो कवियों की ‘आफ द रिकार्ड वार्ता’ बड़ी दिलचस्प है यह मेरे दिलों दिमाग के हार्ड डिस्क में सेव हो गया, इससे पहले की इसका वायरस मेरे दिल और दिमाग को डेस्ट्रोयड (कवि न. एक इस शब्द का ज्यादा प्रयोग करते हैं) करे, इसको आपके पास भेज रहा हूँ , यह संवाद की शैली में आपके सामने है—

 यह अयोध्या के फैसले की शाम का वक्त है, जोश और उन्माद का माहौल है ,राइटिस्ट खुशी से सरोबार हैं और लेफ़्टिस्ट तुरंत घटना पर अपनी टिप्पणी देने से यह कह कर बचना चाहते है कि अभी अदालत के पूरे निर्णय को पढ़ना है। दो कवि जिनका जिक्र मैंने ऊपर किया वे भी लगातार मामले को देखते रहे है और दोनों के बीच प्रस्तुत है वार्ता के कुछ अंस—

 कवि 1 – भाई, आखिर अदालत भी मान ही गई और हो गया दूध का दूध और पानी का पानी। अब ससुरे कहाँ मुह छिपाएँगे राम जी ने पिछवाड़े पर अच्छी चपत लगाई।

 कवि 2 – अबे होता भी क्यों नहीं, हनुमान जी की शक्ति छोड़ती क्या अदालत को? बजरंग बली ने तो अवतार लेकर 1992 में मस्जिद को एक पल में ढहा दी थी, क्या यह आदमी के बस की बात थी?

कवि1- ये बात तो ठीक है पर ई ससुरे नेता नहीं सुधरेंगे, इन्हें दौरा पड़ता है अरे हम क़हत है कि अब जब अदालत फैसला कर दिन है तो काहे का ना-नुकर… भाई- चलो और बनाओ मंदिर

कवि 2- देखों भाई तुमको कुछ समझ नहीं आएगा अब हमे हर काम सोच कर करना पड़ेगा नाही तो ई समाजवादियों से फिर लोहा लेना पड़ सकता है। भागवत जी का बयान नहीं पढ़ा, कहते है की ’यह किसी के हार और जीत की बात नाही है’ कभी सुना था ऐसा । हमे रणनीति से चलना होगा, सबको मिलाकर, तभी तो कांग्रेस भी कह रही है कि ‘हम अदालत के फैसले का स्वागत करते हैं’… इन्हें मिला कर चलना होगा … मुलायम चचा जैसे लोगो को भी पकड़ कर रखना होगा…. हिन्दुत्व के लिए लड़ने वाले चाहिए और लड़ेगा कौन भाई? पिछड़े और दलित…

कवि 1 – हा. ….ये बात कही है तुमने सोलह आने खरी, भाई मान गए , तुम दूर की कौड़ी भाप लेते हो। लेकिन अगर फैसला हमारे खिलाफ जाता तो?

कवि2- तुम बुरबक ही रह गए । कोई भी अदालत आस्था से बड़ी हो सकती है क्या? कटियार जी ने क्या कहा था सुने थे? उन्होने कहा था कि हम मंदिर के लिए कुछ भी कर सकते हैं। ससुरे तुम इतना भी नहीं समझ पाते हो । अब बताओ अदालत के फैसले वाले दिन फोर्स कहा लगी थी? मुसलमानों के मोहल्ले के पास। हम क्या करते? हम आस्था के लिए कुछ भी करते? कुछ भी कहने का मतलब समझ रहे हो न…कुछ भी , इसे ये अदालत भी जानती है। यह देश के भविष्य का सवाल था। यह ‘रामराज्य’ का सवाल था । अब देखना जब नरेंद्र मोदी, अपना प्रधानमंत्री बनेगा और तब देश में हम गांधी के सपने का रामराज्य लाएँगे।

कवि1- राम राज्य तो ठीक है पर ये जो हैं, इनने हमारी हजारों साल की परंपरा को ‘डेस्ट्रोएड’ कर दिया और अभी भी छाती पर मूंग दल रहे है, इनका क्या करें।?

कवि2— बकरे की माँ कब तक खैर मनाएगी ,इनका भी वही होगा जो उड़ीसा और गुजरात में किया है।रामजी की कृपा बनी रहे… बस


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